Ahmad Fraz Shayari in Hindi. आज इस आर्टिकल में आपके लिए अहमद फ़रज़ की सबसे BEST शायरी पोस्ट की गयी है। अहमद फ़रज़ उर्दू के प्रसिद्ध शायर कवी और स्क्रिप्ट-राइटर थे।
इन्होने आसान शब्दों के शायरी लिखी जो पड़ने वाले के दिल को छू जाती थी। पेश है अहमद फ़रज़ की कलम से निकले हुए कुछ चुंनिंदा मोती:-
👉Top Ahmad Faraz Shayari In Hindi |
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उसकी जफ़ाओं ने मुझे तहजीब सीखा दी है
मैं रोते हुए सो जाता हूँ पर शिकवा नहीं करता
जो जहर पी चूका हूँ तुम्ही ने मुझे दिया
अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआएं मुझे न दो
रंजिश ही सही दिल ही दुखने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
दिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
दिल भी पागल है की उस शख्स से वाबस्ता है
जो किसी और का न होने दे न अपना रखे
अब के हम बिछड़े तो कभी ख्वावों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले
एक नफरत ही नहीं दुनिया में दर्द का सबब फ़राज़
मुहब्बत भी सकूं वालों को बड़ी तकलीफ देती है
किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम
तुन मुझसे खफा है तो ज़माने के लिए आ
Ahmad Faraz Shayari 2 line
उसकी जफ़ाओं ने मुझे तहजीब सीखा दी है
मैं रोते हुए सो जाता हूँ पर शिकवा नहीं करता
किसी बेवफा की खातिर ये जूनून कब तक
जो तुम्हें भुला चूका है उसे तुम भी भूल जाओ
कुछ इस तरह गुज़री है जिंदगी जैसे
टा उम्र किसी दूसरे के घर में रहा
हुआ है तुझसे बिछड़ने के बाद ये मालूम
की तू नहीं था तेरे साथ एक दुनिया थी
अब तो दिल तम्मना है तो ऐ काश यही हो
आंसू की जगह आँख से हसरत निकल आये
हम अगर मंज़िलें न बन पाएं
मंज़िलों तक का रास्ता हो जाएं
अपने हो होते हैं जो दिल पे वार करते हैं फ़राज़
वरना गैरों को क्या खबर दिल की जगह कौन सी है
Ahmad Faraz Poetry
फ़रज़ तेरे जूनून का ख्याल है वर्ना
ये क्या ज़रा वो सूरत सभी को प्यारी है
उस शख्स से इतना सा तालुक है फ़राज़
वो परेशान हो तो हमें नींद नहीं आती
तुम तकल्लुफ को भी इखलास समझते हो फ़राज़
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएं हम
ये भी बहुत है तुझको अगर भूल जायें हम
अब तेरे ज़िकर पे हम बात बदल देतें हैं
कितनी रग़बत थी तेरे नाम से पहले पहले
एक और बरस बीत गया उसके बगैर
जिसके होते हुए होते थे जमाने मेरे
जो गैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए
की हमसे दोस्त बहुत बे खबर हमारे हुए
Ahmad Faraz Love Shayari
जिससे ये तबियत बड़ी मुश्किल से लगती थी
देखा तो वो तस्वीर हर एक दिल से लगी थी
किसी को घर से निकलते ही मिल गयी मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफर में रहा
जी में जो आती कर गुज़रो कहीं ऐसा न हो
कल पशेमान हो की क्यों दिल का कहा माना नहीं
मुद्दतें हो गयी फ़रज़ मगर
वो जो दीवानगी की थी है अभी
दिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का दर भी नहीं जाता
ज़िन्दगी ये सही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
देखो ये किसी और की आँखें है की मेरी
देखूं ये किसी और का चेहरा है की तुम हो
हो दूर इस तरह की तेरा गम जुदा न हो
पास आ तो यूँ की जैसे कभी तू मिला न हो
Ahmad Faraz Best shayari
अभी कुछ और करिश्में ग़ज़ल के देखते हैं
फ़रज़ अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं
आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा
अगर तुम्हारे आने ही का है सवाल तो फिर
चलो फिर मैं हाथ बढ़त हूँ दोस्ती के लिए
कठिन है राह-गुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
बहुत कड़ा है सफर थोड़ी दूर साथ चलो
इससे पहले की बेवफा हो जाएं
क्यों न दोस्त हम जुड़ा हो जाएं
दो घडी उससे रहो दूर तो यूँ लगता है
जिस तरह साया ऐ दिवार से दिवार जुदा
इस से पहले की बेवफा हो जाएँ
क्यों न ऐ दोस्त हम जुड़ा हो जाएँ
हमको अच्छा नहीं लगता कोई हम नाम तेरा
कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रखे
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Ahmad Faraz Best shayari
भरी बहार में एक शाख पर खिला है गुलाब
की जैसे तूने हथेली पे गाल रखा है
एक पल जो तुझे भूलने का सोचता हूँ
मेरी सांसे मेरी तक़दीर से उलझ जाती हैं
इस तरह गौर से मत देख मेरा हाथ ऐ फ़राज़
इन लकीरों में हसरतों के सिबा कुछ भी नहीं
और फ़राज़ चाहियें क्तिनी मोहब्बतें तुझे
माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रखा है
दिवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की
लोगों ने मेरे घर को रास्ता बना लिया
दिल भी पागल है की उस सख्श से वाबस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे
चला था ज़िकर ज़माने की बेवफाई का
सो आ गया है तुम्हारा ख्याल वैसे ही
किस किस से मुहब्बत के वादे किये हैं तूने
हर रोज़ एक न्य शख्स तेरा नाम पूछता है
बंदगी हमने छोड़ दी है फ़राज़
क्या करें लोग जब खुदा हो जाएँ
Ahmad Faraz Sad shayari
वो रोज़ देखता है दुबे हुए सूरज को फ़राज़
काश मैं भी शाम का मंज़र होता
कांच की तरह होते हैं गरीबों के दिल फ़राज़
कभी टूट जाते हैं कभी तोड़ दिए जाते हैं
तुम्हारी दुनिया में हम जैसे हजारों थे फ़राज़
हम ही पागल थे जो तुम्हे पा के इतराने लगे
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएं हम
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएं हम
मुझको मालूम नहीं हुस्न की तारीफ फ़राज़
मेरी नज़रो में हसीं वो है जो तुझ जैसा हो
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