Rahim Ke Dohe रहीम के दोहे - कवी रहीम 1556 ईस्वी में लाहौर में जन्मे थे . उनके पिता का नाम बैरम खान था. कवी रहीम ने कई दोहे लिखे जिनमे से मुख्य दोहे यहाँ शेयर किये जा रहे हैं. इन्हे कॉपी करने के लिए दोहे के ऊपर अंगूठे 3 second तक तप करें उसके बाद select all कर के कॉपी करें.
👉Rahim ji ke Dohe in Hindi |
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अमरबेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि ।
रहिमन ऐसे प्रभुहि तजि, खोजत फिरिए काहि ॥
वहै प्रीत नहि रीति वह, नहीं पाछिलो हेत ।
घटत-घटत ‘रहिमन’ घटै, ज्यों कर लीन्हे रेत ॥
मुनि नारी पाषान ही, कपि, पशु गुह मातंग।
तीनों तारे रामजू, तीनों मेरे अंग
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पावस देखि रहीम’ मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछत कौन ॥
रहिमन गली है सांकरी, दूजो नहि ठहराहि।
आपु अहै, तो हरि नहीं, हरि, तो आपुन नाहि ॥
माँगे मुकरि न को गयो , केहि न त्यागियो साथ ।
माँगत आगे सुख लह्यो, तै रहीम रघुनाथ ॥
जेहि रहीम मन आपनो कीन्हो चारु चकोर।
निसि-वासर लाग्यो रहे, कृष्ण चन्द्र की ओर ॥
थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात ।
धनी पुरुष निधन भये, करैं पाछिली बात ॥
बड माया को दोष यह , जो कबहूं घटि जाय।
तो, रहीम मरोबो भलो, दुख सहि जियै बलाय ॥
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को तऊ न छाँडति छोह॥
राम नाम जान्यो नहीं, भई पूजा में हानि।
कहि रहीम क्यों मानिहें, जम के किकर कानि।।
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रहिमन कोऊ का करै, ज्वारी, चोर, लबार।
जो पत-राखनहार है, माखन-चाखनहार॥
गहि सरनागति राम की, भवसागर की नाव।
रहिमन जगत-उधार को, और न कछू उपाय ॥
रहिमन आटा के लगे, बाजत है दिन-राति।
घिउ शक्कर जे खात हैं , तिनकी कहा बिसाति ॥
राम-नाम जान्यो नहीं, जान्यो सदा उपाधि ।
कहि रहिम तिहि आपुनो, जनम गंवायो बाधि ॥
थोरी किए बडेन की, बडी बडाई होय ।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरधर कहत न कोय ॥
👉Rahim ji ke Dohe class 9 |
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धनि रहीम गति मीन की, जल बिछुरत जिय जाय ।
जियत कंज तजि अनत बसि, कहा भौर को भाय ॥
मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय ।
रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय ॥
भूप गनत लघु गुनिन को, गुनी गनत लघु भूप।
रहिमन गिरि ते भूमि लौ, लखौ एकै रूप ॥
देनहार कोउ और है , भेजत सो दिन रैन ।
लोग भरम हम पै धरै, याते नीचे नैन ॥
रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो ना प्रीति।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत ॥
जिहि रहीम तन मन लियो, कियो हिए बिच भौन ।
तासों दुःख-सुख कहन की, रही बात अब कौन ॥
प्रीतम छबि नैनन बसी, पर-छबि कहां समाय।
भरी सराय ‘रहीम’ लखि, पथिक आप फिर जाय।।
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दीन सबन को लखत है, दीनहि लखे न कोय ।
जो, रहीम’ दीनहि लखे, दीनबंधु सम होय ॥
ओछे को सतसंग, रहिमन तजहु अंगार ज्यों ।
तातो जारै अंग , सीरे पै कारो लगे ॥
जे गरीब सों हित करें, धनि ‘रहीम’ ते लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण-मिताई-जोग।।
रहिमन पैडा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल।
बिलछत पांव पिपीलिको, लोग लदावत बैल ॥
रहिमन कहत सु पेट सों, क्यों न भयो तू पीठ।
रीते अनरीते करै, भरे बिगारत दीठ ॥
जो रहीम करबौ हुतो, ब्रज को इहै हवाल ।
तो काहे कर पर धरयौ, गोवर्धन गोपाल ॥
पनगबेलि पतिव्रता , रिति सम सुनो सुजान ।
हिम रहीम बेली दही, सत जोजन दहियान ॥
रहिमन धागा प्रेम को, मत तोडो चटकाय ।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गांठ पड जाय ॥
दोनों रहिमन एक से, जो लों बोलत नाहि ।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु बसंत के माहि ॥
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