Majrooh Sultanpuri shayari ( Poetry ) in hindi - मजरूह सुल्तान पूरी की लाजवाब शायरी के चुनिंदा मोती हमारी वेबसाइट से पढ़ें, मजरूह साहब एक प्रसिद्ध उर्दू शायर तो थे ही वो गीतकार भी बहुत कमाल के थे. उनका जनम उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में 1 अक्टूबर 1919 को हुआ था.
दोस्तों अगर आप शायरी के दीवाने है तो आपको बता दें की हमारी वेबसाइट जिसका नाम वेब्शायरी है. यहाँ से आपको देश विदेश के प्रसिद्ध और गुमनाम शायरों की शायरी का बहुत बड़ा संग्रह मिलने वाला हैं. कृपया हमारी वेबसाइट को फॉलो करें
रहते थे कभी जिनके दिल में, हम जान से भी प्यारों की तरह
बैठे हैं उन्हीं के कूंचे में हम, आज गुनहगारों की तरह
rahte the jinke dil me hum jaan se bhi pyaro ki trha
baithe hai unhi ke kuche me hum gunahgaro ki trha- 1
यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं
मिलने वाले कहीं उल्फ़त में जुदा होते हैं
yu to apas me bigadte hai khfa hote hai
milne wale kabhi ulfat me juda hote hai - 2
हम आज कहीं दिल खो बैठे
यूँ समझो किसी के हो बैठे
hum aaj kahi dil kho baithe
yu samjho kisi ke ho baithe -3
फ़साना जब्र का यारों की तरह क्यूँ ‘मजरूह’
मज़ा तो जब है कि जो कहिए बरमला कहिए
fsana jabr ka yaro ki trha kyu majrooh'
mja to jab hai ki jo kahiye barmla kahiye - 4
Majrooh Sultanpuri sad shayari
वो जो मिलते थे कभी हम से दिवानों की तरह
आज यूँ मिलते हैं जैसे कभी पहचान न थी
wo ji milte the kabhi diwano ki trha
aaj yu milte hai jaise kabhi pahchan n thi - 5
देख ज़िन्दां के परे जोशे जुनूं, जोशे बहार,
रक्स करना है तो फिर पांव की ज़ंजीर ना देख.
dekh jinda ke pare joshe janun joshe bhaar
rakas karna hai to fir pao ki janjir n dekh - 6
मुझे ये फ़िक्र सब की प्यास अपनी प्यास है साक़ी
तुझे ये ज़िद कि ख़ाली है मेरा पैमाना बरसों से
mujhe ye fiker sab ki pyas apni pyas hai sakitujhe ye jid ki khali hai mera paimana varso se - 7
ग़म-ए-हयात ( जिंदगी ) ने आवारा कर दिया वर्ना
थी आरजू तेरे दर पे सुबह ओ शाम करें
gum ae hyat ne jindagi awara kar di
thi arju tere dar pe subha o sham kare - 8
सुनते हैं की कांटे से गुल तक हैं राह में लाखों वीराने
कहता है मगर ये अज़्म-ए-जुनूँ* सहरा से गुलिस्ताँ दूर नहीं
sunte hai kato se gul tak hai rah me lakho viranekahta hai magar ye ajam ae janun shraa se gulsita door nahi - 9
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर,
लोग आते गए और कारवां बनता गया.
mai akela chla tha janibe manjil magar
log ate gaye karwan banta gya - 10
तिश्नगी ( प्यास ) ही तिश्नगी है किस को कहिए मय-कदा
लब ही लब हम ने तो देखे किस को पैमाना कहें
tishangi hi tishangi hai kis ko kahiye may kda
luv hi luv hamne to dekhe kis ko paimana kahe - 11
ऐसे हंस हंस के न देखा करो सब की जानिब
लोग ऐसी ही अदाओं पे फ़िदा होते हैं
aise has has ke n dekha karo sab ki janib
log aisy hi adaon pe fida hote hai - 12
बढ़ाई मय जो मोहब्बत से आज साक़ी ने
ये काँपे हाथ कि साग़र भी हम उठा न सके
bdayi mye jo muhabbat se aaj saki ne
ye kape hath ki sagar bhi hum utha n sake -13
गुलों से भी न हुआ जो मेरा पता देते
सबा उड़ाती फिरी ख़ाक आशियाने की
gulo se bhi hua n jo mera pta dete
swa udati firi khaak ashiane ki - 14
Best poetry of Majrooh Sultanpuri
बचा लिया मुझे तूफ़ाँ की मौज ने वर्ना
किनारे वाले सफ़ीना मेरा डुबो देते.
bcha liya mujhe tufa ki moj ne varna
kinare wale safina mera dubo dete - 15
मेरी निगाह में है अर्ज़-ए-मास्को ‘मजरूह’
वो सरज़मीं कि सितारे जिसे सलाम करें
meri nigah me hai arj ae masko majrooh
wo sarjamin ki sitare jise slam kare - 16
जिस हाथ में है तेग़-ए-जफ़ा उस का नाम लो
‘मजरूह’ से तो साए को क़ातिल कहा न जाए
jiske hath me hai tege jfa us ka nam lomajrooh se to saye ko katil kaha n jaye -17
वफ़ा के नाम पे तुम क्यूँ संभल के बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं बात हैं ज़माने की
bfaa ke naam pe tum kyu sambhal ke baith gaye
tumhari baat nahi baat hai jmane ki - 18
पहले सौ बार इधर और उधर देखा है,
तब कहीं डर के तुम्हें एक बार देखा है.
pahle so baar idhar or udhar dekha hai
tab kahi dar ke tumhe ek bar dekha hai -19
शमा भी, उजाला भी मैं ही अपनी महफिल का
मैं ही अपनी मंजिल का राहबर भी, राही भी.
shmaa bhi ujala bhi mai hiapni mahfil ka
mai hi apni manjil ka rahbr bhi rahi bhi -20
Beautiful lines of Majrooh Sultanpuri
कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
koe hum dum na raha koe shara na rahahum kisi ke na rahe koe hmara na raha - 21
क्या ग़लत है जो मैं दीवाना हुआ, सच कहना
मेरे महबूब को तुम ने भी अगर देखा है
kya galat hai jo mai diwana hua sach kahna
mere mahboob ko tum ne bhi dekha agar - 22
हाल-ए-दिल मुझ से न पूछो मेरी नज़रें देखो
राज़ दिल के तो निगाहों से अदा होते हैं
haal ae dil mujh se n puchho meri nazre dekho
raaj dil ke to nigaho se ada hote hai - 23
ये आग और नहीं दिल की आग है नादां
चिराग हो के न हो, जल बुझेंगे परवाने
ye aag or nahi dil ki aag hai nada
chirag ho ke n ho jal bujhege parwane - 24
मुझे सहल हो गई मंजिलें वो हवा के रुख भी बदल गये
तेरे हाथ, हाथ में आ गया कि चिराग राह में जल गये
mujhe sahal ho gayi manjile wo hwa ke rukh bhi badal gaye
tere hath, hath me aa gya ki chirag rah me jal gaye - 25
अब कारगह-ए-दहर में लगता है बहुत दिल
ऐ दोस्त कहीं ये भी तेरा ग़म तो नहीं है
ab kargah ae dahar me lagta hai dil bahut
ae dost kahi ye bhi tera gum to nahi hai - 26
दश्त ओ दर बनने को हैं ‘मजरूह’ मैदान-ए-बहार
आ रही है फ़स्ल-ए-गुल परचम को लहराए हुए
dashat o dar banne ko hai majrooh maidan ae bhaar
aa raho hai fasal ae gul parcham ko lahraye huye - 27
‘मजरूह’ लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नाम
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह
majrooh likh rahe hai wo ahal ae wafa ka naam
hum bhi khade huye hai gunahagar ki trha - 28
Majrooh Sultanpuri Shayari in hindi
उन से बिछड़े हुए ‘मजरूह’ ज़माना गुज़रा
अब भी होंटों में वही गर्मी-ए-रुख़्सार सही
un se bichhde huye majrooh jmana gujra
ab bhi hotho me wahi garmi ae rukhsar sahi - 29
तुझे न माने कोई तुझ को इस से क्या ‘मजरूह’
चल अपनी राह भटकने दे नुक्ता-चीनों को
tujhe n mane koe tujh ko is se kya majrooh
chal apni rah bhatakne de nukta chino ko - 30
पारा-ए-दिल है वतन की सरज़मीं मुश्किल ये है
शहर को वीरान या इस दिल को वीराना कहें
para ae dil hai vatan ki sarjamin mushkil ye hai
shahar ko viran ya is dil ko viran kahe - 31
दहर में ‘मजरूह’ कोई जावेदाँ मज़मूँ कहाँ
मैं जिसे छूता गया वो जावेदाँ ( शाश्वत ) बनता गया
dahar me majrooh koe javeda majmoo kaha
mai jise chhuta gya javeda bnata gya - 32
‘मजरूह’ क़ाफ़िले की मेरे दास्ताँ ये है
रहबर ने मिल के लूट लिया राहज़न के साथ
majrooh kafile ki mere dasta ye hairahvar ne mil ke lut liya rahjan ke sath - 33
शमा भी, उजाला भी मैं ही अपनी महफिल का
मैं ही अपनी मंजिल का राहबर भी, राही भी
shmaa bhi uajal bhi mai hi apni manjil ka
mai hi apni manjil ka rahwar bhi rahi bhi - 34
ये रुके रुके से आँसू ये दबी दबी सी आहें
यूँही कब तलक ख़ुदाया ग़म-ए-ज़िंदगी निबाहें
ye ruke ruke se ansu ye dabi dabi se aahen
yuhi kab talak khudaya gum ae jindagi nibahe - 35
सहरा में बगूला भी है ‘मजरूह’ सबा भी
हम सा कोई आवारा-ए-आलम तो नहीं है
sahra me bagula bhi haiswa bhi
hum sa koe awaraae alam to nahi hai - 36
मुझे दर्द-ए-दिल का पता न था
मुझे आप किस लिए मिल गए
mujhe dard ae dil ka pta n tha
mujhe aa kis liye mil gaye - 37
Two Line Shayari of Majrooh Sultanpuri
सैर-ए-साहिल कर चुके ऐ मौज-ए-साहिल सर ना मार
तुझ से क्या बहलेंगे तूफानों के बहलाए हुए
sai ae sahil kar chuke ae moj ae sahil sar n maar
tujh se kya bahlenge tufano ke bahlaye huye - 38
तेरे सिवा भी कहीं थी पनाह भूल गए
निकल के हम तेरी महफ़िल से राह भूल गए
tere siwa bhi kahi thi pnaah bhool gaye
nikal ke hum teri mahfil se raah bhool gaye - 39
जला के मशाल-ऐ-जाना, हम जुनूने सिफत चले
जो घर को आग लगाए हमारे साथ चले
jla ke mshaal ae jana hum janune sifat chale
jo ghar ko aag lgaye hmare sath chale - 40
बहाने और भी होते जो ज़िन्दगी के लिए
हम एक बार तेरी आरजू भी खो देते
bhaane or bhi hote jo jindagi ke liyehum ek war teri arju bhi kho dete - 41
अलग बैठे थे फिर भी नज़र साकी की पड़ी मुझ पर
अगर है तिश्नगी (प्यास ) कामिल तो पैमाने भी आयेंगे
Alag baithe the fir bhi nazar saki ki padi mujh par
agar hai tishangi kamil to paimane bhi ayenge - 42
मिली जब उनसे नज़र, बस रहा था एक जहां
हटी निगाह तो चारों तरफ थे वीराने
mili jab unse nzar bas raha tha ek jaha
hati nigah to charo traf the virane - 43
मजरूह सुल्तानपुरी शायरी
तकदीर का शिकवा बेमानी, जीना ही तुझे मंजूर नहीं
आप अपना मुकद्दर बन न सके, इतना तो कोई मजबूर नहीं
taqdeer ka shikwa bemani jina hi tujhe manjoor nahi
aap apna muqadar ban n sake itna to koe majboor nahi - 44
अब सोचते हैं लाएंगे तुझ सा कहाँ से हम
उठने को उठ तो आए तेरे आस्ताँ (चौखट ) से हम
ab sochte hai layenge tujh sa kaha se hum
uthne ko uth to aye tere asta se hum - 45
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