Javed Akhtar Poetry in hindi - जावेद अख्तर भारत के प्रसिद्ध गीतकार, और संगीत कर है। उनकी लिखी हुई शायरी और गजल में से कुछ चुनिंन्दा मोतिओं का संग्रह आपके लिए यहाँ शेयर किया जा रहा है।
हम तो बचपन में भी अकेले थेहम तो बचपन में भी अकेले थेसिर्फ दिल की गली में खेले थेइक तरफ मोर्चे थे पलकों केइक तरफ आंसुओं के रेले थेथी सजी हसरतें दुकानों परज़िन्दगी के अजीब मेले थेख़ुदकुशी क्या दुखों का हॉल बनतीमौत के अपने Sau झमेले थेज़ेहन -ओ -दिल आज भूखे मरते हैंउन दिनों हमने फाके झेले थे …– Javed Akhtar
ये तस्सल्ली है की हैं नाशाद सबये तस्सल्ली है की हैं नाशाद सबमैं अकेला ही नहीं बर्बाद सबसबकी खातिर हैं यहां सब अजनबीऔर कहने को हैं घर आबाद सबभूलके सब रंजिशें , सब एक हैंमैं बातयूं सबको होगा याद सबसबको दावा -ऐ -वफ़ा सबको यकीनइस अदाकारी में हैं उस्ताद सबशहर के हाकिम का ये फरमान हैकैद में कहलायेंगे आज़ाद सबचार लफ़्ज़ों में कहो जो भी कहोउसको कब फुर्सत सुने फ़रियाद सबतल्खियां कैसे न हों अशआर मेंहम पे जो गुजारी हमें है याद सब …– Javed Akhtar
हमसे दिलचस्प कभी सच्चे नहीं होते हैंहमसे दिलचस्प कभी सच्चे नहीं होते हैंअचे लगते हैं मगर अचे नहीं होते हैंचाँद में बुढ़िया बुज़ुर्गों में खुदा को देखेंभोले अब इतने तो ये बच्चे नहीं होते हैंकोई याद आये हमे कोई हमे याद करेऔर सब होता है ये किस्से नहीं होते हैंकोई मंज़िल हो बहुत दूर ही होती है मगररास्ते वापसी के लम्बे नहीं होते हैंआज तारीख तो दोहराती है खुद को लेकिनइसमें बेहतर जो थे वो हिस्से नहीं होते हैं …– Javed Akhtar
ग़म होते हैं जहां ज़हानत होती हैग़म होते हैं जहां ज़हानत होती हैदुनिया में हर शे की कीमत होती हैअक्सर वो कहते हैं वोह बस मेरे हैंअक्सर क्यों कहते हैं हैरत होती हैतब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थेअब मिलते हैं जब भी फुर्सत होती हैअपनी मेहबूबा में अपनी माँ देखेंबिन माँ के लड़कों की फितरत होती हैइक कश्ती में एक कदम ही रखतें हैंकुछ लोगों की ऐसी आदत होती है …– Javed Akhtar
ख्वाब के गाओं में पीला हैं हमख्वाब के गाओं में पीला हैं हमपानी छलनी में ले चले हैं हमछाछ फूंकें की अपने बचपन मेंदूध से की तरह जले हैं हमखुद हैं अपने सफर की दुश्वारीअपने पैरों के आबले हैं हमतू तो मत कह हमें बुरा दुनियातूने ढला हैं और ढले हैं हमक्यों हैं कब तक हैं किसकी खातिर हैंबड़े संजीदा मास्स -अले हैं हम …– Javed Akhtar
वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही हैवो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही हैज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही हैजो मुझको ज़िंदा जला रहे हैं वोह बेखबर हैंकी मेरी ज़ंज़ीर धीरे -धीरे पिघल रही हैमैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिनमेरे लहू से तुम्हारी दीवार गाल रही हैन जलने पाते थे चूल्हे भी हर सवेरेसुना है कल रात से वोह बस्ती भी जल रही हैमैं जानता हूँ की खामोशी में ही समझदारी हैमगर एहि मसलहत मेरे दिल को खाल रही हैकभी तो इंसान ज़िन्दगी की करेगा इज़्ज़तये एक उम्मीद आज भी दिल में पल रही है …– Javed Akhtar
मुझको यकीन है सच कहती थी जो भी अम्मी कहती थीमुझको यकीन है सच कहती थी जो भी अम्मी कहती थीजब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परिया रहती थीएक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे नाता तोड़ लियाएक वोह दिन जब पेड़ की शाखें बोझ हमारा सेहती थीएक ये दिन जब साड़ी सड़कें रूठी -रूठी लगती हैंएक वोह दिन जब “आओ खेलें ” साड़ी गालियां कहती थीएक ये दिन जब जाएगी रातें दीवारों को तकती हैंएक वोह Din जब शामों की भी पलकें बोझिल रहती थीएक ये दिन जब ज़हन में साड़ी चालाकी की बातें हैंएक वोह दिन जब दिल में भोली -भाली बातें रहती थीएक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आंसू काएक वोह दिन जब ज़रा सी बात पे नदियां बहती थीएक ये घर जिस घर में मेरा साज़ो -सामान रहता हैएक वोह घर जिस घर में मेरी भुधि नानी रहती थी …– Javed Akhtar
दर्द के फूल भी Khilte हैं बिखर जाते हैंदर्द के फूल भी Khilte हैं बिखर जाते हैंज़ख़्म कैसे भी हों कुछ Roz में Bhar जाते हैंरास्ता रोके कड़ी है यही उलझन कब सेकोई पूछे तो कहें क्या की किधर जाना हैछत की कड़ियों से उतरते हैं मेरे ख्वाब मगरमेरी दीवारों से टकरा कर बिखर जाते हैंनरम अलफ़ाज़ , भली बातें , मुहज़्ज़ब लहजे ,पहली बारिश ही में ये रंग उतर जाते हैंउस खिड़की में भी अब कोई नहीं और हम भीसर झुकाये हुए चुपचाप गुज़र जाते हैं …
– Javed Akhtar
मेरे दिल में उतर गया सूरजमेरे दिल में उतर गया सूरजअँधेरे में निखार गया सूरजशिक्षा देकर हमें उजाले कीखुद अँधेरे के घर गया सूरजहमसे वडा था इक सवेरे काहाय कैसा मुकर गया सूरजचांदनी अक्स , चाँद आइनाआईने में संवर गया सूरजडूबते वक़्त ज़र्द * था इतनालोग समझे की मर गया सूरज …– Javed Akhtar
दिल में महक रहे हैं किसी आरज़ू के फूलदिल में महक रहे हैं किसी आरज़ू के फूलपलकों पे खिलने वाले हैं शायद लहू के फूलअब तक है कोई बात मुझे याद हर्फ़ -हर्फ़अब तक मैं चुन रहा हूँ किसी गुफ्तगू के फूलकलियाँ चटक रही थी की आवाज़ थी कोईअब तक समा -अतो में है इक खुश गुलो के फूलमेरे लहू का रंग है हर नोके -खर पैरसेहरा में हर तरफ है मेरी ज़ुस्तज़ू के फूलदीवाने कल जो लोग थे फूलों के इश्क़ मेंअब उनके दामन में भरें हैं रफू के फूल …– Javed Akhtar
मैं पा सका न कभी इस खलिश से छुटकारामैं पा सका न कभी इस खलिश से छुटकारावोह मुझसे जीत भी सकता था , जाने क्यों हराबरष के खुल गए आंसू निथार गयी है फ़िज़ाचमक रहा है सरे -शाम दर्द का ताराकिसी की आँख से टपका था इक अमानत हैमेरी हथेली पे रखा हुआ ये अंगाराजो पैर समेटे तो इक शाख भी नहीं पायीखुले थे पैर तो मेरा आसमान था सारा– Javed Akhtar
जंगल में घूमता है पहरों , फिकरे -शिकार में दरिंदाYa अपने ज़ख्म चाट -ता है , तनहा कछार में दरिंदाबातों में दोस्ती का अमृत , सीनो में ज़हर नफरतों कापरबत पे फूल खिल रहे हैं , बैठा है गार में दरिंदाज़ेहनी यगानगत के आगे , थी ख्वाहिशें खाज़िल बदन कीचट्टान पैर बैठा चाँद ताके , जैसे कुंवारों में दरिंदागाँव से सेहर आने वाले , आये नदी पे जैसे प्यासेथा मुंतज़िर उन्ही का कब से , इक रोज़गार में दरिंदामजहब , न जंग , न सियासत , जाने न जाट -पात को भीअपनी दरिंदगी के आगे , है किस शुमार में दरिंदा …– Javed अख्तर
घर से चला तो दिल के शिव पास कुछ न थाक्या मुझसे खो गया है मुझे क्या मलाल हैआसूदगी से दिल के सभी दाग धूल गएलेकिन वोह कैसे जाए जो शीशे में बाल हैमजबूर हूँ आज तो इलज़ाम किसको दूँकल मैंने ही बना था ये मेरा ही जाल हैफिर कोई ख्वाब देखूं , कोई आरज़ू करूँअब यह दिल -ऐ -तबाब तेरा क्या ख्याल है …– Javed Akhtar
सच ये है बेकार हमें ग़म होता हैजो चाहा था दुनिया में काम होता हैढलता सूरज , फैला जंगल , रास्ता घूमहमसे पूछो कैसा आलम होता हैगैरों को कब फुर्सत है दुःख देने कीजब होता है कोई हमदम होता हैज़ख़्म तो हमने इन आखों से देखें हैंलोगों से सुनते हैं मरहूम होता हैज़ेहन की शाखों पैर अशआर आ जाते हैंजब तेरी यादों का मौसम होता है
– Javed Akhtar
उन चिरागों में तेल ही काम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे
मेरी बुनियादों में कोई टेढ़ थी
अपनी दीवारों को क्या इलज़ाम दूँ
वोह नहर एक किस्सा है दुनिया के वास्ते
फरहाद ने तराशा था खुद को चट्टान पैर
थकान से चूर पास आया था इसके
गिरा सोते में मुझ पैर ये शजर क्यों ?
एक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में
ढूंढता फिर वो नगर -नगर तनहा
रात सर पैर है और सफर बाकी
हमको चलना ज़रा सवेरे था
सब हवाएं ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझको एक कश्ती बादबानी दे गया
पहले भी कुछ लोगों ने जौं बो कर गेंहू चाहा था
हम भी उम्मीद में हैं लेकिन कब ऐसा होता है
ै सफर इतना बेकार तो न जा
न हो मंज़िल , कहीं तो पहुंचा दे
काम से काम उसको देख लेते थे
अब के सैलाब में वो पुल्ल भी गया
आज की दुनिया में जीने का करीना समझो
जो मिले प्यार से उन लोगो को जीना (Ladder) समझो
गली में शोर था मातम था और होता क्या
मैं घर में था मगर इस गुल में कोई सोता क्या
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होंठो पे लतीफे है आवाज़ में छाले हैं
अपनी वजहें -बर्बादी सुनिए तो मजे की है
ज़िन्दगी से यूं खेले जैसे दूसरे की है
सब का ख़ुशी से फासला एक कदम है
हर घर में बस एक ही कमरा काम है
हमको उठना तो मुंह अँधेरे था
लेकिन इक ख्वाब हमको घेरे था
खुश -शकल भी है वो , ये अलग बात है , मगर
हमको जाहीं लोग हमेशा अजीज थे
कौन सा शेर सुनेउँ मैं तुम्हे , सोचता हूँ
न्य उलझा है बहुत और पुराण मुश्किल
गईं -गईं के सिक्के हाथ मेरा खुरदुरा हुआ
जाती रही वो स्पर्श की नरमी , बुरा हुआ .
ऊँची इमारतों से मकान मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए .
– Javed Akhtar
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