नज़ीर अकबराबादी कहर हैं उमस नज़म Jahar hai umas Nazir Akwarwadi

 Jahar hai umas by Nazir Akwarwadi नज़ीर अकबराबादी  कहर हैं उमस नज़म 


क्या अब्र की गर्मी में घड़ी पहर है उमस।

गर्मी के बढ़ाने की अज़ब लहर है उमस।

पानी से पसीनों की बड़ी नहर है उमसं

हर बाग में हर दश्त में हर शहर में उमस।

बरसात के मौसम में निपट ज़हर है उमस।

सब चीज़ तो अच्छी है पर एक क़हर  है उमस।


कितने तो इस उमस के तई कहते हैं गरमाव।

यानी कि घिरा अब्र  हो और आके रुके बाव।

उस वक़्त तो पड़ता है गज़ब जान में घबराव।

दिल सीने में बेकल हो यही कहता है खा ताव।

बरसात के मौसम में निपट ज़हर है उमस।

सब चीज़ तो अच्छी है पर एक क़हर है उमस।


नज़ीर अकबराबादी  कहर हैं उमस नज़म


बदली के जो घिर आने से होती है हवा बंद।

फिर बंद सी गर्मी वह ग़जब पड़ती है यकचंद।

पंखे कोई पकड़े, कोई खोले है खड़ा बंद।

दम रुक के घुला जाता है गर्मी से हर एक बंद।

बरसात के मौसम में निपट ज़हर है उमस।

सब चीज़ तो अच्छी है पर एक क़हर है उमस।


ईधर तो पसीनों से पड़ी भीगें हैं खाटें।

गर्मी से उधर मैल की कुछ च्यूंटियां काटें।

कपड़ा जो पहनिये तो पसीने उसे आटें।

नंगा जो बदन रखिये तो फिर मक्खियां चाटें।

बरसात के मौसम में निपट ज़हर है उमस।

सब चीज़ तो अच्छी है पर एक क़हर है उमस।


रुकने से हवा के, जो बुरा होता है अहवाल।

पंखा कोई आंचल, कोई दामन, कोई रुमाल।

दम धोंकने लगता है लुहारों की गोया खाल।

कुछ रूह को बेताबियाँ, कुछ जान को जंजाल।

बरसात के मौसम में निपट ज़हर है उमस।

सब चीज़ तो अच्छी है पर एक क़हर है उमस।


घबरा के दम आता है, कभी जाता है फूला।

आराम जो दिल का है, सभी जाता है भूला।

आता है कभी होश, कभी जाता है भूला।

कपड़े भी बुरे लगते हैं, जी जाता है भूला।

बरसात के मौसम में निपट ज़हर है उमस।

सब चीज़ तो अच्छी है पर एक क़हर है उमस।


होती है उमस जो कभी एक रात को आकर।

कर डालती है फिर तो क़यामत ही मुक़र्रर।

ईधर तो हवा बंद उधर पिस्सुओं मच्छर।

पानी कोई पीवे तो वह अदहन से भी बदतर।

बरसात के मौसम में निपट ज़हर है उमस।

सब चीज़ तो अच्छी है पर एक क़हर है उमस।


जिस वक़्त हवा बंद हो और आके घटा छाये।

फिर कहिये दिल उस गर्मी में किस तरह न घबराये।

ओढ़ो तो पसीना जो न ओढ़ो तो ग़ज़ब आये।

पिस्सू कभी, मच्छर कभी, खटमल ही लिपट जाये।

बरसात के मौसम में निपट ज़हर है उमस।

सब चीज़ तो अच्छी है पर एक क़हर है उमस।


गर इसमें हवा खुल गई और पानी भी लाई।

तो जी में जी और जान में कुछ जान सी आई।

और इसमें जो फिर हो गई उमस की चढ़ाई।

तो फिर वही रोना, वही गुल शोर, दुहाई।

बरसात के मौसम में निपट ज़हर है उमस।

सब चीज़ तो अच्छी है पर एक क़हर है उमस।


उमस में तो लाज़िम है न पंखा न हवा हो।

एक कोठरी हो जिसमें धुंआ आके भरा हो।

और मक्खियों के वास्ते गुड़ तन से मला हो।

उस वक़्त मज़ा देखिए उमस का कि क्या हो।

बरसात के मौसम में निपट ज़हर है उमस।

सब चीज़ तो अच्छी है पर एक क़हर है उमस।


इस रुत में बल्लाह अ़जब ऐश है दिलख़्वाह।

मेंह बरसे है और सर्द हवा आती है हरगाह।

जंगल भी हरे, गुल भी खिले, सब्ज चरागाह।

उमस ही मगर दिल की सताती है ”नज़ीर“ आह।

बरसात के मौसम में निपट ज़हर है उमस।

सब चीज़ तो अच्छी है पर एक क़हर है उमस।

एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने