Poetry by ram prasad bismil शहीद राम प्रसाद बिस्मिल जी के क्रन्तिकारी विचार और कवितायेँ इमेज सहित डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें .राम प्रसाद बिस्मिल अक्सर कहा करते थे की संसार में जितने भी महान व्यक्ति हुए हैं, बे सभी ब्रह्मचर्यं के प्रताप से ही बने हैं
आज हम आपको भारत एक महान क्रन्तिकारी देश भगत और विख्यात कवी राम प्रसाद बिस्मिल जी की शायरी ,कुछ रचनाये प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिन्हे पढ़ कर आप भी हैरत में पड़ जायेंगे की इस भारत माता की मिटटी से कितने उच्च कोटि के व्यक्तिओं का जनम हुआ है .
जिन्होंने समय समय पर इस धरा पर आकर देश की जनता का मार्ग दर्शन किया और उन्हें नयी दिशा दिखाई .ऐसे ही के महान क्रांति कारी राम प्रसाद बिस्मिल उनका जन्म तब हुआ जब भारत माता विदेशी जंज़ीरों में कैद थी .
रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म कब हुआ :-
उनकी देश भगति और क्रन्तिकारी गतिविधिओं ने अंग्रेजी हकूमत की जड़ें हिला दी थी .उनका जन्म 11 जून 1897 शहजानपुर उत्तर प्रदेश में हुआ था , रामप्रसाद बिस्मिल के पिता का नाम श्री मुरलीधर और माता का नाम श्रीमती मूलमती था. मात्र 11 साल की उम्र से ही बिस्मिल आज़ादी के आंदोलन में शामिल हो गए थे . ये प्रसिद्ध कवी लेखक और शायर थे इनकी लिखी हुयी रचनाओं को पड़ते सुनते ही उस समय के युवाओं के खून में क्रन्तिकारी लहर दौड़ने लगती थी .
राम प्रसाद बिस्मिल की शिक्षा : -
बीमील का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था इस लिए उन्हें बचपन से ही उनके पिता उन्हें हिंदी भाषा का ज्ञान करने लगे थे . बे पढ़ने लिखने में बहुत होशियार थे . बे अपनी कक्षा में प्रतिवर्ष प्रथम आते थे , परन्तु उन्हें उर्दू भाषा सिखने में कठियाई हुयी इस लिए उन्हें अपने पिता जी से कहा की बे उर्दू भाषा में कठिनाई महसूस कर रहे है इस लिए उन्हें अंग्रेजी की शिक्षा दिलवाई जाये परन्तु उनके पिता जी ने इंकार कर दिया .
परन्तु नोवी कक्षा में दाखिला लेते ही वे आर्यसमाज के संपर्क में आ गए बस तभी से उनकी जीवन की दिशा बदल गयी .बे रामप्रसाद से क्रन्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल बन गए अपने क्रांतिकारी कारनामों से अंग्रेजी हकूमत की नींदे उड़ा दी थी
क्या है काकोरी काण्ड :-
सवतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाने और पार्टी कार्य हेतु धन जुटाने के लिए रामप्रसाद और उनके दस साथिओं ने सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई .
9 सितम्बर 1925 को वे अपने इस मक़सद में कामयाब भी हुए परन्तु 26 सितम्बर को 1925 को अंग्रेजी हकूमत ने इस डकैती के मांमले में 40 देश भगतों को गिरफ्तार कर लिया .ये डकैती उन्होंने काकोरी रेलवे स्टेशन पर की थी इस लिए इसे काकोरी काण्ड के नाम से जाना जाता है .
रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी क्यों हुई :-
इस कारनामे के कारण अंग्रेजी हकूमत उनसे पहुत परेशान हुई और उन्हें फांसी की सजा सुना दी उनके साथ अशफ़ात उल्ला खान , राजेंदर लाहड़ी और रोशन सिंह को भी फांसी की सजा सुनाई गयी थी .19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दी गयी. इस खबर को सुनते ही देश के सभी क्रांतिकारिओं के मन में अंग्रेजी हकूमत के परती और ज्यादा नफरत और रोष भर गया .
जिस दिन रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी लगी उस दिन जेल के बाहर हजारों देश भगतों की भीड़ उनके अंतिम दर्शनों के लिए इकट्ठा हो गयी . हज़ारों लोग उनकी अंतिम यात्रा में सम्मिलित भी हुए और उनका अंतिम संस्कार वैदिक मंत्रों के साथ किया गया.
दोस्तों आज हम उन महान क्रन्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल की याद में उनके द्वारा लिखी गयी कुछ अमूल्य पंक्तियाँ आपके लिए लेकर आए हैं , इन्हे आप अपने मित्रों के साथ साँझा जरूर करें .
Ram parsad bismil thoughts in hindi
राम प्रसाद बिस्मिल जी की शायरी
1)..देश हित पैदा हुए हैं देश पर मर जायेंगे
मरते मरते देश को ज़िंदा मगर कर जायेंगे
राम प्रसाद बिस्मिल Ram parsad bismil
2)..हमारी किस्मत में बचपन से ही जुल्म लिखा था
तक़लीफ़े लिखी थी मेहनत लिखी थी
उदासी लिखी थीकिसको फ़िक्र थी
किस्मे हिम्मत थी
जब हमने इस रस्ते पर कदम रखा
दूर तक बता की याद हमें समझने आयी थी
राम प्रसाद बिस्मिल Ram parsad bismil
3)..मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे।
बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे।।
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे।
तेरा ही ज़िक्र या तेरी ही जुस्तजू रहे।।
4)..न मैं चाहूं इस दुनिया को
न चाहूं मैं स्वर्ग में जाना
मुझे वर दे यही माता
मैं रहूं भारत पे दीवाना
5)..हम भी घर में रह कर आराम कर सकते थे
हमें भी माँ बाप ने बड़ी मुश्किलों से पला था
हम घर छोड़ते बाक़ात उनसे ये भी न कह पाए
की अगर कभी आँखों से आंसू गोद में टपकने लगे तो
उन्हें ही अपना बच्चा समझ लेना
6)..मिट गया जब मिटने वाला
फिर सलाम आया तो क्या
दिल की बर्बादी के बाद
उनका पैगाम आया तो क्या
राम प्रसाद बिस्मिल जी की शायरी
8)..मुलजिम हमको मत कहिये बड़ा अफ़सोस होता है
अदालत के अदब से हम यहाँ तशरीफ़ लाएं है
पलट देते हैं हम मोज़े हवादिस अपनी जुर्रत से
की हमने आंधिओं में भी चिराग अक्सर जलाये हैं
9)..इलाही खैर वो हरदम नयी बेदाद करते हैं
हमें तोहमत लगते है जो हम फरियाद करते है
ये कह कहकर बसर की उम्र हमने कैदे उल्फत में
वो अब आज़ाद करते हैं वो अब आज़ाद करते हैं
10)..हम अमन चाहते है
जुलम के खिलाफ
फैंसला अगर जंग से होगा
तो जंग ही सही
11)..दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा
एक बार जमाने को मैं आज़ाद बना दूंगा
बेचारे गरीबों से नफरत है जिन्हे
एक दिन मैं उनकी अमीरी को मिटटी में मिला दूंगा
12)..पंथ, सम्प्रदाय, मजहब अनेक हो सकते हैं, किन्तु धर्म तो एक ही होता है. यदि पंथ- सम्प्रदाय उस एक ईश्वर की उपासना के लिए प्रेरणा देते हैं तो ठीक अन्यथा शक्ति का बाना पहनकर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना न धर्म है और न ही ईश्वर भक्ति.
13)..यदि देशहित मरना पड़े मुझे सहस्रों बार भी, तो भी न मैं इस कष्ट को निज ध्यान में लाऊं कभी. हे ईश! भारतवर्ष में शत बार मेरा जन्म हो, कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो.राम प्रसाद बिस्मिल जी की शायरी
14)..मेरा यह दृढ निश्चय है कि मैं उत्तम शरीर धारण कर नवीन शक्तियों सहित अति शीघ्र ही पुनः भारत में ही किसी निकटवर्ती संबंधी या इष्ट मित्र के गृह में जन्म ग्रहण करूँगा क्योंकि मेरा जन्म –जन्मान्तरों में भी यही उद्देश्य रहेगा कि मनुष्य मात्र को सभी प्राकृतिक साधनों पर समानाधिकार प्राप्त हो. कोई किसी पर हुकूमत न करे.
15)..किसी को घृणा तथा उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाये, किन्तु सबके साथ करुणा सहित प्रेमभाव का बर्ताव किया जाए.राम प्रसाद बिस्मिल Ram parsad bismil
16)..मैं जानता हूँ कि मैं मरूँगा, किन्तु मैं मरने से नहीं घबराता. किन्तु जनाब, क्या इससे सरकार का उद्देश्य पूर्ण होगा? क्या इसी तरह हमेशा भारत माँ के वक्षस्थल पर विदेशियों का तांडव नृत्य होता रहेगा? कदापि नहीं. इतिहास इसका प्रमाण है. मैं मरूँगा किन्तु फिर दुबारा जन्म लूँगा और मातृभूमि का उद्धार करूँगा
17)..मुझे विश्वास है कि मेरी आत्मा मातृभूमि तथा उसकी दीन संतति के लिए नए उत्साह और ओज के साथ काम करने के लिए शीघ्र ही फिर लौट आयेगी.राम प्रसाद बिस्मिल जी की शायरी
18)..मैं ब्रिटिश साम्राज्य का नाश चाहता हूँ.राम प्रसाद बिस्मिल Ram parsad bismil
राम प्रसाद बिस्मिल की उर्दू गजल
चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?
कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो !
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है !
साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा !
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है !
दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद ,
अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है !
बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना ,
'बिस्मिल' अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है !
बिस्मिल की अन्तिम रचना
मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या !
दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या !
मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल ,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या !
ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में ,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या !
काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते ,
यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या !
आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प ,
सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या
राम प्रसाद बिस्मिल Ram parsad bismil
रामप्रसाद बिस्मिल जी की रचना मातृ-वन्दना
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।
माथे पे तू हो चन्दन, छाती पे तू हो माला ;
जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊँ ।।
जिससे सपूत उपजें, श्रीराम-कृष्ण जैसे ;
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।
माई समुद्र जिसकी पदरज को नित्य धोकर ;
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।
सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर ;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।
तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मन्त्र गाऊँ ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं चढ़ाऊँ ।।
ram parsad bismil shayari
रामप्रसाद बिस्मिल जी की रचना 'न चाहूं मान'
न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना
करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना
राम प्रसाद बिस्मिल Ram parsad bismil
बला से हमको लटकाए अगर सरकार फांसी से,
लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फांसी से।
लबे-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी,
तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फांसी से।
खुली है मुझको लेने के लिए आग़ोशे आज़ादी,
ख़ुशी है, हो गया महबूब का दीदार फांसी से।
कभी ओ बेख़बर तहरीके़-आज़ादी भी रुकती है?
बढ़ा करती है उसकी तेज़ी-ए-रफ़्तार फांसी से।
यहां तक सरफ़रोशाने-वतन बढ़ जाएंगे क़ातिल,
कि लटकाने पड़ेंगे नित मुझे दो-चार फांसी से।
जिस्म वो क्या जिस्म है जिसमें न हो खून-ए-जुनूँ
क्या लड़े तूफाँ से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है
हिंदू और मुस्लिम मिलकर कुछ भी कर सकते हैं जो वे चाहते हैं
हमारा दृढ़ संकल्प मजबूत है दुश्मन हमसे सावधान रहें
अब बारी आती है , रामप्रसाद जी की उस कविता की जिसे सभी देश भगत बहुत शान से गाते थे और भगत सिंह सुखदेव और आज़ाद भी इसी गीत को गाकर हँसते हँस्ते देश के लिए कुर्बान हो गए
कविता ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’:
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-कातिल में है?
करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफ़िल में है।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां!
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है?
खींच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
है लिये हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर
और हम तैयार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हाथ जिनमें हो जुनूँ, कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हम तो निकले ही थे घर से बाँधकर सर पे कफ़न
जाँ हथेली पर लिये लो बढ़ चले हैं ये कदम
ज़िंदगी तो अपनी मेहमाँ मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
यूँ खड़ा मक़तल में कातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफानों की टोली और नसों में इंक़लाब
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
राम प्रसाद बिस्मिल Ram parsad bismil
शहीद राम प्रसाद बिस्मिल जी के विचार
शहीद राम प्रसाद बिस्मिल जी के विचार
रामप्रसाद बिस्मिल प्रेरक विचार – Ram Prasad Bismil
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।
माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;
जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।
जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।
माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।
सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।
तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ ।
ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो ।
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कान्तिमय हो ।।
अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में,
संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो ।
तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो ।।
तेरी प्रसन्नता ही आनन्द का विषय हो ।।
वह भक्ति दे कि 'बिस्मिल' सुख में तुझे न भूले,
वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो ।
Ram parsad bismil thoughts in hindi
जदिलों ही को सदा मौत से डरते देखा,
गो कि सौ बार उन्हें रोज ही मरते देखा।
मौत से वीर को हमने नहीं डरते देखा।
मौत को एक बार जब आना है तो डरना क्या है,
हम सदा खेल ही समझा किए, मरना क्या है।
वतन हमेशा रहे, शादकाम और आजाद,
हमारा क्या है, अगर हम रहे, रहे न रहे।
मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे,
बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे।
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे,
तेरा हो जिक्र या, तेरी ही जुस्तजू रहे।।
अब न अगले वलवले हैं, और न अरमानों की भीड़!
एक मिट जाने की हसरत, अब दिले बिस्मिल में है!
राम प्रसाद बिस्मिल Ram parsad bismil
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