एक अजीब सा मंजर नज़र आता हैं,
हर एक आँसूं समंदर नज़र आता हैं,
कहाँ रखूं मैं शीशे सा दिल अपना,
हर किसी के हाथ मैं पत्थर नज़र आता हैं
बेवफाई का आलम तो देखो,
कलम पकड़ता हुँ तो शायरी बेवफा हो जाती है।
मनाने निकलता हुँ दिल को,
तो रूह खफा़ हो जाती है ।
मुझसे मेरा दिल सवालात् करने लगा,
कहता है, क्या यही है वो जिसके लिये तुने मुझे बेगाना कर दिया??
मैने कहा, अरे मेरे जिगर के टुकडे,
तु भी तो उस बेदर्द को देख रूक सा जाता था..
ये ख्वाहिश पूरी होगी इसी आस मैं जिया करते हैं..
हर सुबह हर शाम तेरा इंतज़ार किया करते हैं,
हर एक ख्वाब मैं तेरा दीदार किया करते हैं ,
ज़िंदा है शाहजहाँ की चाहत अब तक,
गवाह है मुमताज़ की उल्फत अब तक,
जाके देखो ताज महल को ए दोस्तों,
पत्थर से टपकती है मोहब्बत अब तक..
जख्म जब मेरे सीने के भर जायेंगें,
आसूं भी मोती बन कर बिखर जायेंगे,
ये मत पूछना किस-किस ने धोखा दिया,
वर्ना कुछ अपनों के चेहरे उतर जायेंगें..
ज़िंदा है शाहजहाँ की चाहत अब तक,
गवाह है मुमताज़ की उल्फत अब तक,
जाके देखो ताज महल को ए दोस्तों,
पत्थर सुनते है मुहब्बत की दास्ताँ अब तक..
दर्द का एहसास जानना है तो प्यार करके देखो,
अपनी आँखों में किसी को उतार कर देखो,
चोट उनको लगेगी आँसू तुम्हें आ जायेंगे,
ये एहसास जानना हो तो दिल हार कर देखो
प्यार किया था तो प्यार का अंजाम कहाँ मालूम था,
वफ़ा के बदले मिलेगी बेवफाई कहाँ मालूम था,
सोचा था तैर के पार कर लेंगे प्यार के दरिया को,
पर बीच दरिया मिल जायेगा भंवर कहाँ मालूम था
अगर वो खुश है देखकर आँसू मेरी आँखोँ मे,
तो रब की कसम हम मुस्कुराना छोड़ देँगे,
तड़पते रहेँगे उसे देखने को,
लेकिन उसकी तरफ नज़रेँ उठाना छोड़ देँगे
ये दिल न जाने क्या कर बैठा,
मुझसे बिना पूछे ही फैसला कर बैठा,
इस ज़मीन पर टूटा सितारा भी नहीं गिरता,
और ये पागल चाँद से मोहब्बत कर बैठा
कोई गम नही एक तेरी जुदाई के सिवा,
मेरे हिस्से मे क्या आया तन्हाई के सिवा,
मिलन की रातें मिली, यूँ तो बेशुमार,
प्यार मे सब कुछ मिला शहनाई के सिवा..