1 ) अगर मनुष्य का मन शाँन्त है
चित्त प्रसन्न है ह्रदय हर्षित है
तो निश्चय ही ये अच्छे कर्मो का फल है – स्वामी दयानंद सरस्वती
2 ) लालच वह अवगुण होता है ,
जो प्रत्येक दिन बढ़ता ही जाता है ।
जब तक इंसान का पतन नहीं हो जाता है। – स्वामी दयानंद सरस्वती
3 ) काम शुरू करने से पहले उसके बारे में सोचना बुद्धिमानी है ,
और यदि काम करते हुए उस पर सोचना सबधाणी होती है ,
और यदि आप काम ख़त्म करने के
बाद सोचते हो तो आप महा मुर्ख हो। – स्वामी दयानंद सरस्वती
4 ) इंसान की आत्मा परमात्मा का ही अंश होता है
जिसे हम अपने कर्म से गति प्रदान करते है ,
और फिर आत्मा हमारी दशा को तय करती है । – स्वामी दयानंद सरस्वती
5 ) जीवन में मृत्यु को टाला नहीं जा सकता.
हर कोई ये जानता है, फिर भी अधिकतर लोग
अन्दर से इसे नहीं मानते – स्वामी दयानंद सरस्वती
7 ) दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिये और
आपके पास सर्वश्रेष्ठ लौटकर आएगा। – स्वामी दयानंद सरस्वती
8 ) जिसने गर्व किया, उसका
पतन अवश्य हुआ है |" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
9 ) यश और 'कीर्ति' ऐसी 'विभूतियाँ' है,
जो मनुष्य को 'संसार' के माया जाल से
निकलने मे सबसे बङे 'अवरोधक' होते है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
10 ) लोभ वो अवगुण है,
जो दिन प्रति दिन तब तक बढता ही जाता है,
जब तक मनुष्य का विनाश ना कर दे।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
11 ) क्षमा' करना सबके बस की बात नहीं,
क्योंकी ये मनुष्य को बहुत बङा बना देता है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
12 ) वेदों मे वर्णीत सार का पान करनेवाले ही ये जान सकते हैं
कि 'जिन्दगी' का मूल बिन्दु क्या है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
13 ) क्रोध का भोजन 'विवेक' है,
अतः इससे बचके रहना चाहिए।
क्योकी 'विवेक' नष्ट हो जाने पर,
सब कुछ नष्ट हो जाता है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
14 ) ईश्वर पूर्ण रूप से पवित्र और बुद्धिमान है.
उसकी प्रकृति, गुण, और शक्तियां सभी पवित्र हैं ।
वह दुनिया का रचनाकार, रक्षक, और संघारक है। – स्वामी दयानंद सरस्वती
15) इंसान की आत्मा परमात्मा का ही अंश होता है
जिसे हम अपने कर्म से गति प्रदान करते है ,
और फिर आत्मा हमारी दशा को तय करती है । – स्वामी दयानंद सरस्वती
16 ) हमें पता होना चाहिए कि भाग्य भी कमाया जाता है
और थोपा नहीं जाता. ऐसी कोई कृपा नहीं है
जो कमाई ना गयी हो। – स्वामी दयानंद सरस्वती
17 ) अपने सामने रखने या याद करने के लिए लोगों की
तसवीरें या अन्य तरह की पिक्चर लेना ठीक है.
लेकिन भगवान् की तसवीरें और छवियाँ बनाना गलत है । – स्वामी दयानंद सरस्वती
18 ) धन एक वस्तु है जो ईमानदारी और
न्याय से कमाई जाती है.
इसका विपरीत है अधर्म का खजाना । – स्वामी दयानंद सरस्वती
19 ) ईष्या से इंसानो को दूर रहना चाहिए।
क्योकि ईष्या इंसान के अंदर ही अंदर जलाती है
और इंसानो को उनके रास्ते से भटकाकर उन्हें नष्ट कर देती है । – स्वामी दयानंद सरस्वती
20 ) किसी भी रूप में प्रार्थना प्रभावी है क्योंकि यह एक क्रिया है ।
इसलिए, इसका परिणाम होगा,
यह इस ब्रह्मांड का नियम है जिसमें हम खुद को पाते हैं । – स्वामी दयानंद सरस्वती
21 ) जब एक इंसान अपने क्रोध पर विजय हासिल कर लेता है ,
अपने काम को काबू में कर लेता है, ”
यश “की इच्छा को त्याग देता है ,
मोह माया से दूर चला जाता है ।
तब उसके अंदर एक अदभुत शक्तियां आ जाती है। – स्वामी दयानंद सरस्वती
22 ) सबसे उच्च कोटि की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है
जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो । – स्वामी दयानंद सरस्वती
23 ) इंसान का पाप कर्म ही उस इंसान के विवेक को
भ्रामित करके उसे पतन के रास्ते पर लेकर जाता है। – स्वामी दयानंद सरस्वती
24 ) जो मनुष्य दूसरों का मांस खाकर अपना मांस बढ़ाना चाहता है,
उस) से बढ़कर नीच और कौन होगा। – स्वामी दयानंद सरस्वती
25 मानव को अपने पल-पल को आत्मचिन्तन मे लगाना चाहिए ,
क्योकी हर क्षण हम परमेश्वर द्वार दिया गया ‘समय ‘ खो रहे है । – स्वामी दयानंद सरस्वती
चित्त प्रसन्न है ह्रदय हर्षित है
तो निश्चय ही ये अच्छे कर्मो का फल है – स्वामी दयानंद सरस्वती
2 ) लालच वह अवगुण होता है ,
जो प्रत्येक दिन बढ़ता ही जाता है ।
जब तक इंसान का पतन नहीं हो जाता है। – स्वामी दयानंद सरस्वती
3 ) काम शुरू करने से पहले उसके बारे में सोचना बुद्धिमानी है ,
और यदि काम करते हुए उस पर सोचना सबधाणी होती है ,
और यदि आप काम ख़त्म करने के
बाद सोचते हो तो आप महा मुर्ख हो। – स्वामी दयानंद सरस्वती
4 ) इंसान की आत्मा परमात्मा का ही अंश होता है
जिसे हम अपने कर्म से गति प्रदान करते है ,
और फिर आत्मा हमारी दशा को तय करती है । – स्वामी दयानंद सरस्वती
5 ) जीवन में मृत्यु को टाला नहीं जा सकता.
हर कोई ये जानता है, फिर भी अधिकतर लोग
अन्दर से इसे नहीं मानते – स्वामी दयानंद सरस्वती
6 ) भगवान का ना कोई रूप है ना रंग है,वह अविनाशी और अपार है, स्वामी दयानंद सरस्वती
7 ) दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिये और
आपके पास सर्वश्रेष्ठ लौटकर आएगा। – स्वामी दयानंद सरस्वती
8 ) जिसने गर्व किया, उसका
पतन अवश्य हुआ है |" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
9 ) यश और 'कीर्ति' ऐसी 'विभूतियाँ' है,
जो मनुष्य को 'संसार' के माया जाल से
निकलने मे सबसे बङे 'अवरोधक' होते है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
10 ) लोभ वो अवगुण है,
जो दिन प्रति दिन तब तक बढता ही जाता है,
जब तक मनुष्य का विनाश ना कर दे।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
11 ) क्षमा' करना सबके बस की बात नहीं,
क्योंकी ये मनुष्य को बहुत बङा बना देता है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
12 ) वेदों मे वर्णीत सार का पान करनेवाले ही ये जान सकते हैं
कि 'जिन्दगी' का मूल बिन्दु क्या है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
13 ) क्रोध का भोजन 'विवेक' है,
अतः इससे बचके रहना चाहिए।
क्योकी 'विवेक' नष्ट हो जाने पर,
सब कुछ नष्ट हो जाता है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
14 ) ईश्वर पूर्ण रूप से पवित्र और बुद्धिमान है.
उसकी प्रकृति, गुण, और शक्तियां सभी पवित्र हैं ।
वह दुनिया का रचनाकार, रक्षक, और संघारक है। – स्वामी दयानंद सरस्वती
15) इंसान की आत्मा परमात्मा का ही अंश होता है
जिसे हम अपने कर्म से गति प्रदान करते है ,
और फिर आत्मा हमारी दशा को तय करती है । – स्वामी दयानंद सरस्वती
16 ) हमें पता होना चाहिए कि भाग्य भी कमाया जाता है
और थोपा नहीं जाता. ऐसी कोई कृपा नहीं है
जो कमाई ना गयी हो। – स्वामी दयानंद सरस्वती
17 ) अपने सामने रखने या याद करने के लिए लोगों की
तसवीरें या अन्य तरह की पिक्चर लेना ठीक है.
लेकिन भगवान् की तसवीरें और छवियाँ बनाना गलत है । – स्वामी दयानंद सरस्वती
18 ) धन एक वस्तु है जो ईमानदारी और
न्याय से कमाई जाती है.
इसका विपरीत है अधर्म का खजाना । – स्वामी दयानंद सरस्वती
19 ) ईष्या से इंसानो को दूर रहना चाहिए।
क्योकि ईष्या इंसान के अंदर ही अंदर जलाती है
और इंसानो को उनके रास्ते से भटकाकर उन्हें नष्ट कर देती है । – स्वामी दयानंद सरस्वती
20 ) किसी भी रूप में प्रार्थना प्रभावी है क्योंकि यह एक क्रिया है ।
इसलिए, इसका परिणाम होगा,
यह इस ब्रह्मांड का नियम है जिसमें हम खुद को पाते हैं । – स्वामी दयानंद सरस्वती
21 ) जब एक इंसान अपने क्रोध पर विजय हासिल कर लेता है ,
अपने काम को काबू में कर लेता है, ”
यश “की इच्छा को त्याग देता है ,
मोह माया से दूर चला जाता है ।
तब उसके अंदर एक अदभुत शक्तियां आ जाती है। – स्वामी दयानंद सरस्वती
22 ) सबसे उच्च कोटि की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है
जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो । – स्वामी दयानंद सरस्वती
23 ) इंसान का पाप कर्म ही उस इंसान के विवेक को
भ्रामित करके उसे पतन के रास्ते पर लेकर जाता है। – स्वामी दयानंद सरस्वती
24 ) जो मनुष्य दूसरों का मांस खाकर अपना मांस बढ़ाना चाहता है,
उस) से बढ़कर नीच और कौन होगा। – स्वामी दयानंद सरस्वती
25 मानव को अपने पल-पल को आत्मचिन्तन मे लगाना चाहिए ,
क्योकी हर क्षण हम परमेश्वर द्वार दिया गया ‘समय ‘ खो रहे है । – स्वामी दयानंद सरस्वती